Dasaratha Shani Stotram

Saturn or Shani enters the star constellation of Rohini once in every 30 years. This is one of the most dreaded transits of the kings and his kingdom. The scriptures say “Kings will die and kingdoms will fall when Shani enters Rohini”. It is said that during the reign of king Dasaratha when Shani was about to enter Rohini Nakshatra, king Dasaratha worshipped Shani and pleased with his prayers Saturn did not enter Rohini during the reign of king Dasharatha. Hence the Dasaratha Shani stotra are considered an excellent remedy for Saturn related troubles.

दशरथकृत शनि स्तोत्र

नम:  कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥

नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

देवासुरमनुष्याश्च सि विद्याधरोरगा: ।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

दशरथकृत शनि स्तोत्र

 

हिन्दी पद्य रूपान्तरण

हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण् वाले।

कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले॥

स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।

सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे॥

स्वीकारो नमन मेरे।

स्वीकारो भजन मेरे॥

हे दाढी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।

हे दीर्घ नेत्रवाले, शुष्कोदरा निराले॥

भय आकृतितुम्हारी, सब पापियों को मारे।

स्वीकारो नमन मेरे।

स्वीकारो भजन मेरे॥

हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।

कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले॥

तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।

स्वीकारो नमन मेरे।

स्वीकारो भजन मेरे॥

हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।

हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ॥

हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।

हैं पूज्य चरणतेरे।

स्वीकारो नमन मेरे॥

हे सूर्य-सुततपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।

हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी॥

विश्वास श्रध्दा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।

स्वीकारो नमन मेरे।

हे पूज्य देव मेरे॥

अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।

तप-दग्ध-देहधरी, नित योगरत अपारी॥

संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।

स्वीकारो नमन मेरे।

स्वीकारो नमन मेरे॥

नितप्रियसुधा में रत हो,
अतृप्ति में निरत हो।

हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो॥

हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।

स्वीकारो भजन मेरे।

स्वीकारो नमन मेरे॥

जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की
वृष्टि।

वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये॥

उत्ताम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।

स्वीकारो नमन मेरे।

स्वीकारो भजन मेरे॥

हो व दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।

मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता॥

डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।

स्वीकारो नमन मेरे।

शनि पूज्य चरण तेरे॥

हो मूलनाश उनका, दुर्बुध्दि होती जिन पर।

हो देव असुर मानव, हो सिध्द या विद्याधर॥

देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।

स्वीकारो नमन मेरे।

स्वीकारो भजन मेरे॥

होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।

बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै॥

सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।

स्वीकारो नमन मेरे।

हैं पूज्य चरण तेरे॥